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शिवरात्रि का सार क्या है?गुरुदेव श्री श्री रविशंकर


यह संपूर्ण सृष्टि शिव की क्रीड़ा है, उस चेतना का एक नृत्य है जो जगत की विविध प्रजातियों में प्रकट हो रही है। सरलता और बुद्धिमत्ता की पावन लयबद्धता में घूम रही संपूर्ण सृष्टि ही शिव है। शिव अस्तित्व की शाश्वत अवस्था का नाम है।
जब शिव तत्व और शक्ति एक हो जाते हैं, वही शिवरात्रि है।
हम शिवरात्रि पर शिव और शक्ति के मिलन का उत्सव मनाते हैं किंतु वास्तव में ब्रह्म की अंतर्निहित अद्वैत प्रकृति को पहचानना शिवरात्रि है। शिवरात्रि को गतिमय आदिशक्ति का विवाह पारलौकिक शिव से होता है। शिव, मौन साक्षी या चिदाकाश हैं और शक्ति, चित्ति या चिदविलास है। शक्ति वह रचनात्मक ऊर्जा है जो अनंत में क्रीड़ा करती हुई प्रकट हो रही है। शिव निराकार चेतना हैं; शक्ति इसी चेतना की अभिव्यक्ति है। यह पदार्थ और ऊर्जा, प्रकृति और पुरुष, द्रव्य और गुण के रूप में द्वैत को पहचानना है।
साधारणतया जिस क्षण से हम जागते हैं तब से लेकर हम उस क्षण तक सक्रिय रहते हैं जब तक हम रात में थककर सो नहीं जाते। लेकिन एक ऐसी अवस्था भी है जो सुषुप्ति, जागृत और स्वप्न से परे है। शिवरात्रि पर हम जागृत रहते हैं और तीन अवस्थाओं से परे एक पारलौकिक चेतना का अनुभव करते हैं। यह स्वयं को हर प्रकार की निद्रा से जगाने का अवसर है। शिवरात्रि पर किया गया जागरण मात्र स्वयं को जगाए रखने के लिए विवश करना या जोर-जोर से भजन गाना नहीं है बल्कि यह तो स्वयं के भीतर जाने और सचेत रूप से उस आंतरिक विश्राम के प्रति जागरूक होना
 है जो वैसे भी प्रतिदिन हमें निद्रा प्रदान करती है। जब आप नींद की एक निश्चित अवस्था से परे चले जाते हैं, तो समाधि या शिव सायुज्य में विश्राम का अनुभव होता है।
शिव को प्रतीकात्मक रूप से लिंग द्वारा दर्शाया गया है। वास्तव में ईश्वर किसी भी लिंग से परे है। इसलिए ईश्वर को एकलिंगी कहा जाता है कुछ और नहीं बल्कि स्वयं चेतना है। शरीर, मन और बुद्धि से परे, राग और द्वेष से परे, वह चेतना केवल एक है, वह एकलिंग है।
'कैलाश' शिव का पौराणिक निवास है, जिसका अर्थ है जहाँ केवल उत्सव और आनंद है। शिव हर स्थान पर उपस्थित हैं; चाहे संसार हो या संन्यास, शिव से बचा नहीं जा सकता। हर काल में शिव तत्व की उपस्थिति अनुभव करना ही शिवरात्रि का सार है।
शिव कोई व्यक्ति नहीं हैं जो हजारों साल पहले इस धरती पर आए थे, फिर भी उनका चित्रण आँखें बंद किए हुए और गले में सर्प लपेटे हुए किया जाता है, जो दर्शाता है कि वह सोते हुए प्रतीत हो सकते हैं लेकिन सर्प की भाँति पूरी तरह से जाग रहे हैं। चित्रों में उन्हें नील वर्ण का दिखाया गया है। नीला रंग आकाश की विशालता का प्रतीक है। उनके सिर पर सुशोभित चंद्रमा उनके भीतर की हर वस्तु को दर्शाता है। सभी सत्ताएँ चाहे वे जीवित हों या अन्य योनियों में हों, उनके गणों का अंश हैं। शिव की बारात में हर तरह के लोग देखे जा सकते हैं। वह सभी को वैसे ही स्वीकार करते हैं जैसे वे हैं और वे सभी एक ही चेतना के अंश हैं। कहा गया है "सर्वम् शिवमयम् जगत्"। यह संपूर्ण संसार शिवमय है।
आपके पास जो कुछ भी है उसके प्रति जागरूक होने और उसके लिए आभारी होने का प्रतीक है शिवरात्रि ! उस सुख के लिए आभारी रहें जो विकास की ओर ले जाता है, और उस दुःख के लिए भी आभारी रहें जो जीवन को गहराई देता है। यही शिवरात्रि मनाने की सम्यक विधि है।

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