गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
आजमगढ़ हमारा शरीर पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश इन पञ्चभूतों से बना है। पंचभूतों में प्रथम स्थान पृथ्वी तत्व का है। संस्कृत में संपूर्ण विश्व को प्रपंच कहा जाता है। यह संपूर्ण संसार कुछ इस तरह से बना है कि ईश्वर, पृथ्वी तत्व में सर्वाधिक प्रधानता से उपस्थित हैं।
पर्यावरण हमारा पहला शरीर है जहाँ से हमें अन्न मिलता है। हमारी पाँचों इन्द्रियों का भोजन हमें हमारे वातावरण से मिलता है । हमारा पूरा जीवन भोजन, स्वच्छ जल, शुद्ध हवा और अग्नि पर निर्भर है। ये सभी हमें पृथ्वी तत्व, जल तत्व, वायु तत्व और अग्नि तत्व से मिलता है । ये सभी चार तत्व आकाश तत्व में रहते हैं । इसलिए हमें इन पांचो भूतों को सम्मान करना चाहिए और इन्हें शुद्ध रखना चाहिए । तभी हम जीवन में सुखी रह सकते हैं और तभी यह दुनिया टिक सकती है ।
*हमारे पास है एक ही पृथ्वी, इसे बचाना हमारी ज़िम्मेदारी*
हमें इस बात के प्रति सजग रहना चाहिए कि हमारे पास केवल एक ही पृथ्वी है। हम यहीं बड़े हुए हैं और हमारा यह शरीर पूरी तरह से पर्यावरण पर निर्भर है। आज आप दुकानों जो में देखते हैं, कल जब आप उन्हें खाएँगे तो वही आपके शरीर का अंश बन जाएगा। जब हम इस ग्रह पर आये, तब हम केवल 4 या 5 किलो के थे और अभी आपके शरीर का जो भी वजन है वह सब इसी पृथ्वी तत्व से ही आया है। इसलिए आप ऐसा नहीं कह सकते कि ‘मैं अपने शरीर की तो देखभाल करूंगा लेकिन हवा, मिटटी और पानी की गुणवत्ता की ज़िम्मेदारी मेरी नहीं है।’
*जमीन में पानी का स्तर बढ़ाना है तो पेड़ लगाने होंगे*
हमारी परंपरा में यह एक पुरातन प्रथा है कि हर एक व्यक्ति को अपने जीवन में पाँच बड़े-बड़े वृक्ष लगाने चाहिए । तो हर व्यक्ति आज यह संकल्प ले कि हम अपने जीवन में कम से कम पाँच वृक्ष लगाएंगे । वृक्ष लगाने से भूमिगत जल के स्तर में बढ़ोत्तरी होती है।
इसके साथ साथ हमें जल के स्रोत की सफाई पर भी ध्यान देना चाहिए । यदि हमें नदियों और तालाबों को बचाना है तो उन्हें साफ़ रखना बहुत ज़रूरी है । जो नदियाँ और तालाब सूख गए हैं उनको पुनर्जीवित करना भी बहुत आवश्यक है ।
पृथ्वी माता है; वह भूदेवी है । भगवान विष्णु के एक तरफ श्रीदेवी (लक्ष्मी) हैं और एक तरफ भूदेवी हैं । हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि यदि हम भूमि का संरक्षण नहीं करेंगे तो न श्री रहेंगी, न जीवन रहेगा और न नारायण ही रहेंगे ।